श्री श्री ठाकुर की जीवन की संक्षिप्त वृतांत सत्संग पब्लिशिंग हॉउस द्वारा प्रकाशित पुस्तक "पुरुषोत्तम" में लिखी गई है । ऐसे तो श्री श्री ठाकुर के जीवन और वाणियों पर सैकडों पुस्तके और ग्रन्थ लिखी गई हैं जिसे पढ़ते पढ़ते सारा जीवन भी बीत जाये तो कम है । जरूरत है तो श्री श्री ठाकुर को पकड़ कर उनके बताये मार्ग पर इष्टनुराग सहित चलने की । उनकी इच्छाओ का पालन करना कि वो हमसे क्या चाहते है ? उनकी लीलाएँ बहुत से गुरुभाइयों के साथ घटित होती है जो प्रत्यक्षदर्शियों के मुँह से सुनी जाती है वो अलग है, लेकिन वे लीलाएं जो उन्होंने स्वयं की । सत्संग में ऋत्विक देवो के जुबानी सुनी हुई है जो पुस्तकों में भी मिल जाती है ।कुछ वरिष्ठ गुरुभाइयों की आलोचनाओ में भी सुनने को मिलता है ।
मातरी - भक्ति
(1) श्री श्री ठाकुर बाल्यकाल से ही मातरी - भक्त थे । माँ की आज्ञा का हमेशा ख्याल रखते और ये भी ख्याल रखते की कही माँ को कष्ट न हो । एक दिन जब बालक अनुकूल की बदमाशी के लिए माँ बाँस की करची लेकर दौड़ी और वे पकड़ने नहीं दे रहे थे तो उन्हें माँ के कष्ट का ख्याल आया तो देखा की माँ उन्हें पकड़ने के लिए परेशान हो रही है । इस परेशानी को दूर करने के लिए, अपने को पिटवाने के लिए माँ के पास दौड़े आये जिससे माँ को कष्ट न हो । ऐसे है हमारे ठाकुर जो छोटी से छोटी बातो का भी ख्याल रखते है ।
एक दिन बालक अनुकूल का पाँव कट गया । कटे हुए स्थान से रक्त की धार बह रहा था । श्री श्री ठाकुर के कहने के बाद भी माँ ने स्कूल जाने का आदेश दिया । माँ की आज्ञा पाकर अपनी वेदना की परवाह किये बिना वे स्कूल चले गए । वे कहते थे - "मेरे जीवन एक एक मात्र नशा था माँ को खुश रखना"। माँ को खुश करके वाहवाही लूटना और माँ का प्यार पाना । लेकिन माँ अनुशान में बहुत शख्त थीं ।
!! एक कभी ना भुलाने वाली घटना !!
!! मैं तो तुम्हारे लिए ही बैठा था !!
चंद्रकांत मेहता जो गुजरात के रहने वाले थे | अपनी आत्म कथा कहते हुए सुनते है कि जब वे 9 वर्ष के थे तो गुजरात के अपने ग्राम में बीमार पड़ गए | उनके परिवार वाले वहां के विभिन्न डॉक्टरों से इलाज करवाने के बाद भी उनको बचा नहीं पाए | चंद्रकांत मेहता अपने शरीर से निकल कर एक अंधकारमय सुरंग में प्रवेश किया | सुरंग में बहुत देर चलने के बाद उनको एक दुधिया रंग का एक विस्तृत मैदा
न दिखाई दिया जहाँ एक व्यक्ति टहल रहा था | जैसे ही वे उस व्यक्ति के निकट पहुँचे उन्होंने पुन : वापस जाने का निर्देश दिया | निर्देश पाते ही वे पुन: अपने शरीर में वापस आ गए | चंद्रकांत मेहता ऐसे सुन्दर व्यक्ति को कभी नहीं देखा था | किसी अलौकिक देवता का स्वरुप मानकर चल रहे थे |
जब उनकी उम्र 25 साल की हुए तो व्यवसाय के सिलसिले में उन्हें रंगून जाना पड़ा जहाँ उनका परिवार कीमती पत्थरों जैसे हीरा, जवाहरात का व्यवसाय करता था | मेहता जी को व्यवसाय के सिलसिले में विभिन्न घरों में जाना पड़ता था | एक दिन मेहता जी श्री बी एन चटर्जी के घर गए तो देखा की एक पत्रिका रखी हुई है , जिस पर एक दिव्य पुरुष का फोटो है , जिसे उन्होंने अपने मृत्यु के समय दुधिया मैदान में देखा था | मेहता जी उस फोटो को देख कर अस्थिर हो गए एवं चटर्जी साहब से पूछा कि क्या यह व्यक्ति जीवित है और है तो कहाँ मिलेंगे ? चटर्जी साहब ने बताया कि वे उनके गुरु है और हिमाईतपुर में रहते है | मेहता जी ने कहा की वे हमारे भगवान है और चलकर उनका दर्शन कराने की कृपा करे | चटर्जी साहब ने कहा की यदि आप गुजरात से रंगून आ सकते है तो रंगून से हिमाईतपुर अकेले क्यों नहीं जा सकते |
मेहता जी उसी दिन आश्रम का पता लगाकर चल पड़े | मेहता जी जब आश्रम आये तो देखा की वही व्यक्ति वैसे ही बालू के विस्तृत मैदान में उसी भाव-भंगिमा में टहल रहे है | मेहताजी 9 वर्ष की आयु में अपने शरीर त्यागने के बाद जिस व्यक्ति को देखा था आरे ये तो वही व्यक्ति है | मेहता जी दौड़ कर रोते हुए उनके चरणों में गिर पड़े | ये पुरुष कोई और नहीं परम दयाल जीवन-नाथ जीव जगत के स्वामी स्वयं श्री श्री ठाकुर थे | श्री श्री ठाकुर उनको देखते हुए स्वयं भी रोने लगे और दोनों हाथो से उठाकर अपने ह्रदय से लगाया और बोले -" इतने दिनों के बाद आया, तुम्हारे लिए ही तो बैठा हूँ |" और आगे कहा - "तुम्हारी सत्ता शुद्ध है और तुम उन्हें इसी जीवन में पाओगे |" मेहता जी आजीवन श्री श्री ठाकुर के साथ रहे आश्रम में रहे बाद में उनके साथ देवघर आश्रम आये और यही अपना शरीर छोड़ा !
*** जय गुरु ***
||बन्दे पुरुषोत्तमम् ||
||बन्दे पुरुषोत्तमम् ||
बहुत सुन्दर ! पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
ReplyDeletebahut sundar, jai guru
ReplyDeletevandey purushottamam ------
ReplyDeleteYadi ghar me koi Balak ya Balika paida ho jaye to niyamanusar 12 din tak hum log asauch awastha me rehte hain, us samay Ishtvriti kaise karen, is vishay me Thakur ji dwara diye gaye nirdesh kripaya prastut kare..Jay Guru🙏
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