माँ मेरी जननी मेरी


परम प्रेममय युग पुरूषोत्तम परम दयाल श्री श्री ठाकुर जी के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !
और जगत-जननी श्री श्री बड़ी माँ के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !
और आप सभी को जय गुरु !

जगत माता के विविध रूप 

या देवी सर्वभूतेषु
नमः तश्यी नमः तश्यी माँ नमः तश्यी नमो नमः ।।

हम सब माँ को शक्ति के रूप में पूजते है इनके कई नाम और रूप है जैसे माँ लक्ष्मी, काली माँ, माँ दुर्गा, माँ पार्वती, आदि। और हमारे घर में भी एक माँ होती है। ये वो माँ है जो हमारी जननी है, पोषती है पालती है और हमें कष्ट न हो इसका हमेशा ख्याल रखती है। माँ का ह्रदय कितना कोमल होता है ममतामयी होता है ये सभी जानते है क्योकि सभी को इस माँ ने ही जन्म दिया है। लेकिन जब बात बच्चे की भलाई की हो, जब उसे लगता है कि हम उस माँ की नहीं सुन रहे है तो वो कठोर दंड भी देती है फिर हमें पकड़ कर रोती भी है और कहती है "तुझे ज्यादा तो नहीं मार दिया, देखू कहाँ-कहाँ चोटें आयीं है ?" फिर दुलारती है और समझाती है कि दुबारा गलती मत करना और जैसे मैं कहूँ ठीक वैसा ही करना और माँ का दुलार-प्यार पाकर हम खुश हो जाते है।

श्री श्री ठाकुर को माँ काली सन्देश खिलाते हुए 
अब एक दूसरी बात हम बहुत से अपनी हठ या बात पिता से नहीं पूरा करवा पाते है लेकिन माँ बहुत जल्द ही सुन लेती है और पूरा भी कर देती है। यदि वह हठ सिर्फ यदि पिता द्वारा ही पूरा हो सकता है तो माँ चार बात पिता से सुनकर भी हमारे लिए उनसे अर्जी करती है कहती है "ला दीजिये ना एक बच्चा के लिए तो कह रही हूँ मैं कोई अपने लिए थोड़ी ना मांग रही हूँ।" वह चीज माँ के कहने से हमें मिल जाता है बहुत जल्द। ऐसी होती है माँ दयालु।

ठीक यही होता है एक माँ के उपासक और परम पिता के उपासक के साथ, माँ के उपासक की माँ बहुत जल्दी सुन लेती है जिससे माँ के उपासको की संख्या अधिक है क्योंकि माँ मुरादे जल्दी पूरी करती है। जबकि परमपिता इतनी जल्दी सुनते ही नहीं इसलिए लोग परमपिता की बजाय माँ की शरण में भागते है। ऐसा क्या है दोनों में ? क्या परमपिता सचमुच माँ की अपेक्षा हमसे कम प्यार करते है ? तो जबाब है विल्कुल नहीं, परमपिता के प्यार और माँ के प्यार में थोडा अंतर है। माँ हमारी हठ तो पूरी कर देती है लेकिन ममतावस् वह यह नहीं देख पाती है कि उसमे हमारी भलाई है या नहीं, वह चीज हमारे लिए उपयोगी है या नहीं, कही उससे हमारा अनर्थ तो नहीं जुड़ा। जबकि परमपिता उपरोक्त सभी बातो पर पैनी नजर रखते है यदि उन्हें थोडा-सा भी उसमे हमारा अनर्थ है तो वो हमें किसी कीमत पर नहीं देते। ऐसा है हमारे परमपिता का प्यार जो थोड़ा शुष्क है परन्तु सदैव हमारे हित में होता है। इसलिए कहा जाता है कि परमपिता के शरण में रहने वालो का कभी अहित होता ही नहीं यदि होता भी है तो उसका दूरगामी भलाई छिपी होती है जो समय आने पर पता लग जाता है। एक बात और माँ भी तो उन्ही से लेकर देती है लेकिन वह जिद होता है और माँ की ममता। ये मामला माँ और परमपिता के बीच का है की वो कहाँ से और कैसे देते है ? हमें उनके बीच में दरार नहीं डालना चाहिए और माँ के ममता का, प्यार का अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहिए लेकिन परमपिता के शरण में रह कर क्योंकि यदि कोई भूल हो तो वो संभल ले।

परमपिता श्री श्री ठाकुर  और जगत जननी श्री श्री बड़ी माँ


और माँ से मैं कर जोड़ कर प्रार्थना करता हूँ :

" हे माँ तू बहुत दयालु है ममतामयी है तू अपने बच्चो का बहुत ख्याल रखती हो बस तुझसे एक विनती है कि तू हम बालकों को परमपिता का दर्शन करवा दे। तू यदि चाहेंगी तो वे अपने आप को रोक नहीं पाएंगे और दर्शन देने जरूर आयेंगे। बस तू उनके पास हमारी एक फरियाद पहुँचा दे माँ क्योंकि वों तेरी बात को टाल नहीं पाएँगे।"

जय गुरु !   











          

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