श्री श्री ठाकुर के धरा पर आने के उदेश्य

श्री श्री ठाकुर के धरा पर आने के उदेश्य


वन्दे पुरुषोत्तमम

जय गुरु !


दयाल देश के दयाल धाम के मालिक स्वयं श्री श्री ठाकुर जो परम पुरुष है जीवों पर दया करके उन्हें बचाने आये है। वे वही हैं जो सभी जीवो में बसते है जिनकी दिव्य धारा से आदि काल में इस रहस्यमयी सृष्टी की रचना हुई है। ये वही अनामी पुरुष है जिनकी दिव्या धारा ने इनके धाम के नीचे कई स्तरों में लोकों का निर्माण किया। ऊपर से नीचे की ओर ... अगम लोक जो इनके तख़्त का स्थान है, उसके नीचे जो रचना हुई वह है अलख लोक, उसके नीचे जो रचना हुई वह है सत्तलोक और सत्तपुरुष, ये सभी लोक दयाल देश या संत देश या निर्मल चैतन्य देश कहलाते है। यहाँ के प्रकाश का रंग श्वेत है।
Sri Sri Thakur and Varrious Dhams 
प्रात: प्रार्थना में है।

" सत्तपुरुष चौथे पद वासा,  संतन का वहाँ सदा विलासा।
सो घर दरसाया गुरु पुरे, बीन बजे जहँ अचरज तूरे।।

आगे अलख पुरुष दरबारा, देखा जाय सूरत से सारा।
तिस पर अगम लोक इक न्यारा, संत सूरत कोई करत विहारा।।

तहाँ से दरसे अटल, अटारी अदभुत राधास्वामी महल सँवारी।
सूरत हुई अतिकर मगनानी, पुरुष अनामी जाय समानी '' ।।

इसके नीचे जो चैतन्य है वो है श्याम रंग का और वह भूरे रंग की प्रकट हुई। इस धारा का नाम निरंजन यानी कालपुरुष है और नीचे के ब्रम्हाण्ड में इसी का नाम परब्रम्ह और ब्रम्ह हुआ । उसके नीचे है ज्योति और आद्या है जिसे नीचे के देश यानी ब्रम्हांड में इसी का नाम ''माया" है । इसके नीचे के  को सहस्रदलकमल  कहते है । इससे  धाराएँ  पैदा हुई - सत्य, रज, तम - जिनको ब्रम्हा, बिष्णु और महादेव  कहते है । इसके नीचे के देश को

पिंड देश कहते है जिसमे छ: चक्र शामिल है .........

आज्ञा चक्र
विशुद्धचक्र
अनाहत
मणिपुर
स्वाधिष्ठान
मूलाधार


ये सब माया के अंतर्गत आती है । माया को पर करने के बाद आता है परब्रम्ह और ब्रम्ह । परब्रम्ह और ब्रम्ह के बाद सभी चैतन्य देश जहाँ माया का नमोनिशान नहीं है।

श्री श्री ठाकुर ..... कथा प्रसंगे 3...... सरांश (summary )

वन्दे पुरुषोत्तमम

जय गुरु !



     

41 comments:

  1. 4 वेद 108 उपनिषद 18 पुराण और महाभारत और रामायण में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं लिखा है !
    अनुकूल एक धूर्त व्यक्ति था जो स्वयं को भगवान् कहता था और उसके अंध भक्त उसे भगवान् मानते भी है

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    1. Tum jaise moorkh ke kismat mein nahi h hamare thakur jee

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    2. सही बात है इस संसार मे केवल संत रामपाल जी महाराज ही पुराण संत है

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  2. 4 वेद 108 उपनिषद 18 पुराण और महाभारत और रामायण में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं लिखा है !
    अनुकूल एक धूर्त व्यक्ति था जो स्वयं को भगवान् कहता था और उसके अंध भक्त उसे भगवान् मानते भी है

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  3. 4 वेद 108 उपनिषद 18 पुराण और महाभारत और रामायण में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं लिखा है !
    अनुकूल एक धूर्त व्यक्ति था जो स्वयं को भगवान् कहता था और उसके अंध भक्त उसे भगवान् मानते भी है

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  4. 4 वेद 108 उपनिषद 18 पुराण और महाभारत और रामायण में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं लिखा है !
    अनुकूल एक धूर्त व्यक्ति था जो स्वयं को भगवान् कहता था और उसके अंध भक्त उसे भगवान् मानते भी है

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  5. सभी को जयगुरु !

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  6. सभी को जय गुरु

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  7. Jay guru and belived He was god .

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  8. Anukul chandra ke bare me google me to kuch diya hi nahi .Fake hai ye

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  9. Astha se Jo koi wyakti jise apna guru ya bhagawan manta hai . Uska bhagwan wahi hai. Par astha sbhi me rakhana chahiye.

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  10. Arey bhai aap log '.Srimatbhagawat' mein 12th Khanda aur 2nd addhai ke (page no.943)'KALIKAAL NAAM' KE CHAPTER MEIN dekhiye Sri Sri Thakurji ke barey mein likhi hui hai . Kripaya par lena mere bhai....JG....

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  11. Thakur ji ko galat kahne walo ko thakur ji maaf kare. Agar kisi ko thakur me viswaas nahi ho, koi baat nahi, par galat nahi bolna chahiye. Jo unko apna guru maante hain wo unki mahimaa jaante hain. Jo guru hari naam aur radha naam bhajna shikhaye wo kabhi galat nahi jo sakta. Fir chahe wo aam insaan ho ya koi gyaani mahatma ho. Isiliye galat bolne wale jin kisi ko bhi apna guru ya bhagwan maante ho unki shiksha yaad kar k galat kahne ya karne se daro. Thakur ji ki mahimaa apaar hai. Vande purushottam. Jai guru.

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  12. Jisne kabhi chay ya Gur khaya hi nahi use kya pata mitha kya hota hai. Jai Guru.yug Purushottam shree shree Thakur Anukul Chandra jee ki jai.Thakur jee ke bare me jise galatfahmi hai we 7484076085 per bat kare. Tatha Google Podcast per Adbhut kahani sune. Jai Guru.

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    1. aapko ky mil gya chai or gur khane se bhai jara hm v too sunee....
      esa ky kiye h guruji
      jo bhole naath ko chor k inka puja kiya jata h btayee mujee

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  13. Jai guru sbhi ko .sadbudhi de waise nkratmak logo ko

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