कौन हमें बचाएगा ?

कौन हमें बचाएगा ?










पुरुषोत्तम कौन होत्ते है ? और इनके आदर्शो पर चलने से जीवन में क्या लाभ है ? 

पुरुषोत्तम सर्वोच्य ईश्वरीय सत्ता द्वारा भेजे गए या स्वयं भू आने वाले नर कलेवरधारी नारायण होत्ते है जो वास्तविक कर्म के द्वारा युग-युग में हुवे परिवर्तनों के साथ-साथ जीवन जी कर लोगों के समक्ष कई उदहारण प्रस्तुत करते है और इन परिवर्तनों में कोई कैसे अपने अस्तित्व (existance ) को बचाते हुए (survive) जीवन जी सकता है इसकी कला (art ) बताते है और अपने भक्तो को सिखाते है | जैसे सतयुग में श्री हरी त्रेता में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, द्वापर में लालधारी भगवान श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह , हजरत रसूल , चैतन्य महाप्रभु, श्री रामकृष्ण देव और वर्त्तमान युग पुरुषोत्तम श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र | यही है मनुष्य के सच्चे उधारक .... ये सभी जीवों में वाश करते है | जब कोई पुरुषोत्तम धरा धाम पर आते है तो अपने से पूर्व के सभी परम पुरुषों के परिपूरक (full filler ) होते है | अर्थात उनमे पूर्व के सभी पुरुषोत्तम के सभी गुण विद्यमान होते है | जैसे राम के सभी गुण कृष्ण में थे ..... और उसी प्रकार राम , कृष्ण और जितने भी परम पुरुष आये इन सभी के परिपूरक (full filler ) श्री श्री ठाकुर थे | 

इन्हें ही सतगुरु कहा जाता है ! इनको पकड़ के चलने से जीवन बिलकुल सरल बन जाता है .... जैसे हनुमान और अर्जुन के साथ हुआ | जब ये आते है तो पुरे जनमानस से शरणागत होने का आह्वान करते है चाहे वो सज्जन हो चाहे दुर्ज्जन | आपका गुरु चाहे कोई भी हो धर्म या सम्प्रदाय कोई भी हो इससे उनको कोई लेना देना नहीं ..... वो तो चाहते है कि मनुष्य एक हो जैसे सबका दाता एक है | वो चाहते है कि मनुष्य उनके शरणागत होकर सुखी जीवन लाभ करे और सभी बन्धनों से मुक्त हो क्योंकि मुक्ति के एकेश्वर दाता भी वही होते है | उनके बताये रास्ते से सही मुक्ति का सही मार्ग मिल सकता है |
वे शरणागत सज्जन को शरणागत इसलिए करते है क्योंकि सज्जन जिस पुराने रास्ते से जाते है वर्त्तमान में वह अधिक फलदायी नहीं होता है ..... और अंत में बिखर जाते है और कहते है अब वो युग ही नहीं है ..... उन्हें सतयुग की बाते याद् आने लगती है ! परम पिता को कोसते है .... क्यों ? क्योंकि वे वर्त्तमान नर् में नारायण को नहीं पकड़े ..... यही नियम है विधि का | पुरुषोत्तम स्वयं विधाता होते है इसलिए वे विधि के विधान से ही चलते है और सबको चलना सिखाते है | दूसरा वो दुर्ज्जन को क्यों शरणागत करते है ? कारण ..... दयावस वो बहुत दयालु होते है ..... उनकी दया की कोई सीमा नहीं ..... अनंत हैं वो ..... करुणा के स्वामी होते है ...... वो जानते है कि ये मुर्ख खामखा मारा जायेगा अपनी नादानी से ..... विधि कभी भी अपने ऊपर कोई गलती नहीं लेते | इसलिए इन्हें निर्विकार कहा जाता है | दुर्ज्जन यदि तुरंत अहंकार को त्याग कर उनके शरणागत हो जाये तो ..... उसका और उसके मित्रों का जीवन रक्षित होता है अन्यथा नहीं | जैसे प्रभु श्री राम ने रावण को शरणागत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ा .. परन्तु अहंकार ने उसे ऐसा नहीं करने दिया | अहंकार कौन सा ? जाने, जैसे आज बहुत से लोग भगवान श्री कृष्ण के भक्त है सब रोज राधे-राधे करते है .... जय जय श्री कृष्ण करते है | लेकिन वही बाल-गोपाल फिर नया शरीर ले कर पुन : अवतरित हो कर कहे कि हे मनुष्यों मै तुम्हारा कृष्ण हूँ मुझे पहचानों और मेरे शरणागत हो जाओ .... तो उन्ही के भक्त उन्हें ढोंगी ,पाखंडी और बहरूपिया कहेंगे और गाली देंगे ! कहेंगे कि ये तो फलाना का लड़का खुद को श्री कृष्ण बताता है | यहाँ बात आ जाएगी उसकी औकात की , जात की और हम श्रेष्ठता की | यही अहंकार उसे पुन : शरणागत नहीं होने देगी और उनसे अलग कर देगी | भगवान श्री कृष्ण ने हनुमान से कहा था की हे अंजनी नंदन अब मैं आ चूका हूँ अब आप मेरे शरणागत हो जाये ..... तो हनुमान जी ने कहा की मेरे प्रभु श्री राम के सभी गुण आपमें है .... आप वही है .... लेकिन मेरे मन मस्तिस्क में राम रमे हुए है ... इसलिए मैं आपको follow तो करूँगा लेकिन मेरे गुरु राम ही होंगे !
इसलिए गुरु आपका कोई भी हो यदि ये बात आपको पता चल जाये कि आपके राम , आपके धनश्याम , आपके जीसस , आपके बुद्ध, आपके रसूल ... आपके ठाकुर बन के आये है तो उनके अवश्य शरणागत हो जाये | वो इस युग में क्यों आये है ... किस प्रयोजन से आये है ..... कही मानवता को ही खतरा तो नहीं ? यह बात समझ कर प्रभु की सच्ची सेवा में लग जाये तभी हम आपने अस्तित्व को बचा पाएंगे ... अन्यथा नहीं |

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